नमस्कार विद्यार्थियों! मैं जीवन सहायता से आपका शिक्षक, और आज हम भारत के एक ऐसे महान सपूत के बारे में जानेंगे जिनकी बहादुरी और बलिदान की गाथा आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है। हम बात कर रहे हैं शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की। जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र होता है, तो भगत सिंह का नाम बड़े गर्व और सम्मान के साथ लिया जाता है। वह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक गहरे विचारक, एक कुशल लेखक और एक ऐसे दूरदर्शी युवा थे, जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। चलिए, आज हम इस महान नायक के जीवन को 10 सरल पंक्तियों में समझते हैं और फिर उनके जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
शहीद भगत सिंह पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines on Bhagat Singh)
- भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गाँव (अब पाकिस्तान में) में एक सिख परिवार में हुआ था।
- उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था; उनका पूरा परिवार स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था।
- बचपन से ही भगत सिंह के मन में देशभक्ति की भावना थी, जो 1919 में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद और भी प्रबल हो गई।
- उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर 1926 में “नौजवान भारत सभा” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित करना था।
- भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” का गठन किया।
- लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या की।
- उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका; इसका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि बहरी हो चुकी अंग्रेज़ी हुकूमत तक अपनी आवाज़ पहुँचाना था।
- असेम्बली में बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं, बल्कि अपनी गिरफ्तारी दी और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाया, जो बाद में पूरे देश में गूँज उठा।
- जेल में भारतीय कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की।
- महज 23 साल की उम्र में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई।
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन और क्रांतिकारी बनने की राह
भगत सिंह का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जहाँ देशभक्ति रग-रग में बसती थी। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह भी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। ऐसे माहौल में पले-बढ़े भगत सिंह के मन में बचपन से ही देश को आज़ाद कराने का सपना था। जब वह केवल 12 वर्ष के थे, तब अमृतसर में जलियाँवाला बाग का भीषण नरसंहार हुआ। इस घटना ने उनके बाल मन पर एक अमिट छाप छोड़ी और उन्होंने उसी स्थान पर जाकर अंग्रेज़ी शासन को उखाड़ फेंकने की कसम खाई।
लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे कई क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों के बारे में पढ़ा। जब 1922 में महात्मा गांधी ने चौरी-चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो भगत सिंह जैसे कई युवाओं को निराशा हुई। उनका अहिंसा के मार्ग से विश्वास डगमगा गया और उन्हें लगा कि स्वतंत्रता केवल सशस्त्र क्रांति से ही मिल सकती है।
प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ
अपनी विचारधारा को कार्यरूप देने के लिए भगत सिंह ने क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने “नौजवान भारत सभा” का गठन करके पंजाब के युवाओं में क्रांति की ज्वाला जलाई। बाद में, वह चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” से जुड़ गए और सबने मिलकर इसे “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” (HSRA) का नया नाम दिया।
1928 में साइमन कमीशन के विरोध के दौरान हुए लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश भर दिया। भगत सिंह और उनके साथियों ने लाला जी की मौत का बदला लेने की ठानी। उन्होंने पुलिस सुपरिटेंडेंट जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स को मार दिया। इस घटना के बाद भगत सिंह अंग्रेज़ी हुकूमत की नज़रों में सबसे बड़े अपराधियों में से एक बन गए।
इसके बाद उन्होंने अपनी आवाज़ ब्रिटिश सरकार तक पहुँचाने के लिए एक साहसिक कदम उठाया। उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। यह बम इस तरह बनाया गया था कि इससे किसी को शारीरिक क्षति न पहुँचे। उनका मकसद केवल सरकार के दमनकारी कानूनों का विरोध करना और क्रांति के संदेश को पूरे देश में फैलाना था।
गिरफ्तारी, मुकदमा और शहादत
असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भागने की कोशिश नहीं की और शांति से अपनी गिरफ्तारी दे दी। वे चाहते थे कि अंग्रेज़ी अदालत उनके लिए एक मंच बन जाए, जहाँ से वे अपनी विचारधारा का प्रचार कर सकें। जेल में उन्होंने भारतीय और ब्रिटिश कैदियों के बीच होने वाले भेदभाव के खिलाफ ऐतिहासिक भूख हड़ताल की, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा।
सरकार ने सॉन्डर्स हत्याकांड में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा चलाया। 7 अक्टूबर, 1930 को उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई। देशभर में इस फैसले का विरोध हुआ, लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत अपने फैसले पर अडिग रही। अंततः 23 मार्च 1931 की शाम को, तय समय से पहले, इन तीनों महान क्रांतिकारियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। भगत सिंह हँसते-हँसते देश के लिए कुर्बान हो गए और हमेशा के लिए अमर हो गए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)
भगत सिंह को “शहीद-ए-आज़म” क्यों कहा जाता है?
भगत सिंह ने मात्र 23 वर्ष की आयु में देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी निडरता, त्याग और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल के कारण उन्हें सम्मानपूर्वक “शहीद-ए-आज़म” यानी “शहीदों के सम्राट” की उपाधि दी गई है।
“इंकलाब जिंदाबाद” नारे का क्या अर्थ है?
“इंकलाब जिंदाबाद” का अर्थ है “क्रांति अमर रहे”। इस नारे को भगत सिंह और उनके साथियों ने लोकप्रिय बनाया। इसका उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की स्थापना करना था जो शोषण और अन्याय से मुक्त हो।
भगत सिंह नास्तिक क्यों थे?
भगत सिंह एक गहन चिंतक और अध्येता थे। उन्होंने धर्म, ईश्वर और समाज का गहराई से अध्ययन किया। अपने प्रसिद्ध लेख “मैं नास्तिक क्यों हूँ?” में उन्होंने तर्क दिया कि अन्याय, गरीबी और शोषण को देखकर उनका ईश्वर पर से विश्वास उठ गया। वह किसी भी तरह के अंधविश्वास और रूढ़िवाद के खिलाफ थे और तर्क एवं विज्ञान पर आधारित समाज का निर्माण करना चाहते थे।
भगत सिंह का जीवन और बलिदान हमें सिखाता है कि देशप्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं। उनकी कहानी हमें साहस, समर्पण और अपने सिद्धांतों के लिए खड़े होने की प्रेरणा देती है। वह आज भी करोड़ों युवाओं के लिए एक आदर्श हैं।
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