Thu. Sep 4th, 2025

प्यारे छात्रों, जीवन सहायता में आपका स्वागत है। उत्तर प्रदेश, जिसे भारत का हृदय प्रदेश भी कहा जाता है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यह भूमि कई पर्वों और त्योहारों की जन्मस्थली है, जो यहाँ के जीवन में रंग और उत्साह भर देते हैं। होली, दिवाली, और जन्माष्टमी जैसे कई प्रसिद्ध त्योहार यहाँ बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। लेकिन आज हम एक ऐसे पर्व के बारे में बात करेंगे जो केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक अद्भुत और विशाल आयोजन है, जिसे देखकर दुनिया भर के लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मेरा पसंदीदा त्योहार कुंभ मेला है, जो आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम है।

कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक जमावड़ा है, जहाँ करोड़ों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं। यह सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसा महापर्व है जो भारत की सनातन परंपरा और गहरी आस्था को दर्शाता है। चलिए, इस अद्भुत मेले के बारे में विस्तार से जानते हैं।

10 Lines on My Favourite Festival of Uttar Pradesh in Hindi

कुंभ मेला क्या है?

कुंभ संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है ‘घड़ा’। यह मेला हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ और पर्व है। इसका आयोजन भारत के चार पवित्र स्थानों पर होता है: प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर, उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे और नासिक में गोदावरी नदी के तट पर। इन चारों स्थानों पर हर 12 साल के चक्र में बारी-बारी से कुंभ का आयोजन किया जाता है। प्रयागराज और हरिद्वार में हर छह साल में अर्ध कुंभ का भी आयोजन होता है।

कुंभ मेले की पौराणिक कथा

कुंभ मेले की जड़ें एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा से जुड़ी हैं, जिसे “समुद्र मंथन” के नाम से जाना जाता है। कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए। इस स्थिति का लाभ उठाकर असुरों ने उन पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पराजित कर दिया। मदद के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुँचे। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके ‘अमृत’ (अमरता का पेय) निकालने की सलाह दी।

देवता और असुर अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। मंथन के दौरान, कई दिव्य वस्तुएँ निकलीं और अंत में, धनवंतरी अपने हाथों में अमृत से भरा एक ‘कुंभ’ (घड़ा) लेकर प्रकट हुए। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष के दौरान, भगवान विष्णु के संकेत पर देवराज इंद्र के पुत्र जयंत अमृत का घड़ा लेकर भागे। यह संघर्ष 12 दिनों तक चला, जो मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर हैं। इस दौरान अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। तभी से ये स्थान पवित्र माने जाते हैं और यहाँ कुंभ मेले का आयोजन होता है।

प्रयागराज का कुंभ: एक विशेष स्थान

हालांकि कुंभ चारों स्थानों पर आयोजित होता है, लेकिन प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के कुंभ का विशेष महत्व है। यहाँ तीन नदियों – गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है, जिसे ‘त्रिवेणी संगम’ कहा जाता है। यह माना जाता है कि इस संगम में स्नान करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयागराज में हर 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद, 144 वर्षों के अंतराल पर महाकुंभ का आयोजन होता है, जो अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण माना जाता है।

कुंभ मेले के प्रमुख आकर्षण और अनुष्ठान

कुंभ मेला सिर्फ नदी में स्नान करने तक ही सीमित नहीं है। यह कई तरह की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र होता है।

  • शाही स्नान: यह कुंभ मेले का सबसे बड़ा आकर्षण है। विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत, जिनमें नागा साधु भी शामिल हैं, पूरे वैभव और शोभा के साथ जुलूस में स्नान करने के लिए संगम तट पर आते हैं। इन शाही स्नानों के लिए विशेष तिथियां होती हैं, जो ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय की जाती हैं।
  • कल्पवास: कुंभ के दौरान हजारों श्रद्धालु एक महीने तक संगम के तट पर तंबुओं में रहकर एक सात्विक जीवन जीते हैं, जिसे ‘कल्पवास’ कहा जाता है। वे दिन में कई बार स्नान करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और संतों के प्रवचन सुनते हैं।
  • संतों के प्रवचन: देश भर से आए बड़े-बड़े संत, महात्मा और आध्यात्मिक गुरु यहाँ अपने शिविर लगाते हैं और श्रद्धालुओं को अपने ज्ञान और उपदेशों से मार्गदर्शन करते हैं।
  • नागा साधु: नागा साधुओं को देखना एक अनूठा अनुभव है। ये साधु सांसारिक जीवन का त्याग कर देते हैं और कठोर साधना में लीन रहते हैं। वे आमतौर पर केवल कुंभ के दौरान ही आम जनता के सामने आते हैं।

उत्तर प्रदेश के मेरे प्रिय त्योहार कुंभ पर 10 पंक्तियाँ

  1. कुंभ मेला भारत का एक महापर्व और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है।
  2. इसका आयोजन हर 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।
  3. इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है, जब अमृत की बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं।
  4. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यह मेला गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर आयोजित होता है।
  5. करोड़ों श्रद्धालु इस मेले में पवित्र नदी में स्नान करके पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं।
  6. मेले का मुख्य आकर्षण ‘शाही स्नान’ होता है, जिसमें विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत हिस्सा लेते हैं।
  7. नागा साधुओं की उपस्थिति इस मेले को और भी रहस्यमयी और आकर्षक बनाती है।
  8. यह त्योहार ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर मनाया जाता है, जब ग्रहों की विशेष स्थिति बनती है।
  9. कुंभ मेले को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ के रूप में मान्यता दी गई है।
  10. यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की गहरी आस्था, संस्कृति और एकता का प्रतीक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

महाकुंभ 2025 का आयोजन कहाँ होगा?

अगला महाकुंभ 2025 में प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा। यह एक बहुत ही भव्य आयोजन होगा क्योंकि यह 144 वर्षों के बाद होने वाला महाकुंभ है।

कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?

पूर्ण कुंभ मेला प्रत्येक स्थान पर हर 12 साल में आयोजित होता है। अर्ध कुंभ हर 6 साल में केवल हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है। महाकुंभ 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद, यानी 144 वर्षों के बाद, केवल प्रयागराज में आयोजित होता है।

कुंभ मेले में इतनी भीड़ क्यों होती है?

लोगों का मानना है कि कुंभ के दौरान पवित्र नदियों का जल अमृत के समान हो जाता है। इस पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष मिलता है। इसी गहरी आस्था के कारण दुनिया भर से करोड़ों लोग यहाँ आते हैं, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण जमावड़ा बन जाता है।

अंत में, कुंभ मेला केवल एक त्योहार नहीं है, यह एक जीवंत अनुभव है जो हमें भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपराओं से जोड़ता है। यह विश्वास, भक्ति और मानवीय एकता का एक महासागर है। यह हमें सिखाता है कि आस्था में कितनी शक्ति होती है जो लाखों-करोड़ों लोगों को एक साथ एक स्थान पर खींच लाती है। और अधिक अध्ययन सामग्री के लिए, जीवन सहायता पर जाएँ।

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