कुतुब मीनार का रहस्यमयी इतिहास: क्या यह वास्तव में वेधशाला है? जानिए 900 साल पुराने सच की अनसुनी कहानी
नई दिल्ली: दिल्ली में स्थित कुतुब मीनार, जो विश्व धरोहरों में से एक है, पिछले कुछ समय से विवादों और चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है। इसे देखने के लिए हर दिन सैकड़ों पर्यटक पहुंच रहे हैं, और इसके इतिहास को लेकर नई-नई चर्चाएं हो रही हैं। कुतुब मीनार के बारे में जानने के लिए देश के करोड़ों लोग उत्सुक हैं। खासतौर पर यह सवाल कि क्या यह वास्तव में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित है, या इसका इतिहास कहीं और पुराना और गूढ़ है।
कुतुब मीनार: ऐतिहासिक तथ्य और नई परिकल्पना
कुतुब मीनार को लेकर यह परिकल्पना लंबे समय से है कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 ईस्वी में बनवाना शुरू किया था, और उनके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसे 1220 में पूरा किया। हालांकि, हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पूर्व निदेशक धर्मवीर शर्मा ने दावा किया कि यह मीनार वास्तव में “सूर्य स्तंभ” है, जिसे करीब 700 साल पहले चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में बनाया गया था। उनका कहना है कि इसे खगोलविद आचार्य वाराहमिहिर के निर्देशन में वेधशाला के रूप में निर्मित किया गया।
यह परिकल्पना कुतुब मीनार के निर्माण को एक धार्मिक और खगोलीय उद्देश्य से जोड़ती है, जिसमें झरोखे, बेल-बूटे, घंटियां और कमल के फूल जैसी नक्काशी शामिल हैं। धर्मवीर शर्मा के अनुसार, ये वास्तुकला शैली हिंदू परंपरा से जुड़ी हुई हैं।
क्या है विवाद का मुख्य कारण?
कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में हिंदू और जैन देवी-देवताओं की मूर्तियों के होने के कारण विवाद और गहरा गया है। इन मूर्तियों को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि मस्जिद को प्राचीन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया।
कुतुब मीनार में बेल-बूटों और कमल के फूल जैसी डिजाइन इस दावे को और भी मजबूत करती हैं। इसके अलावा, 1981 में हुए एक बड़े हादसे के कारण कुतुब मीनार के अंदर प्रवेश बंद कर दिया गया था, जिससे इसके रहस्यमयी इतिहास को समझने में और बाधा उत्पन्न हुई।
कुतुब मीनार: वेधशाला होने का समर्थन
पूर्व ASI अधिकारी केके राजदान, जो 2006 में कुतुब मीनार परिसर के इंचार्ज रह चुके हैं, ने भी इस बात का समर्थन किया है कि कुतुब मीनार वेधशाला हो सकती है। उनके अनुसार, मीनार के झरोखों और अंदर लिखावट को देखकर ऐसा लगता है कि इसे किसी खगोलीय उद्देश्य के लिए उपयोग किया गया होगा।
लौह स्तंभ और काली मां की मूर्तियां
कुतुब मीनार के पास स्थित लौह स्तंभ और मस्जिद में मौजूद काली मां की मूर्तियां भी इस विवाद का हिस्सा हैं। इन मूर्तियों को खंडित कर दिया गया है, लेकिन ध्यान से देखने पर उनके वास्तविक रूप का अहसास होता है।
क्या है पर्यटकों की राय?
हाल ही में इस विवाद के कारण कुतुब मीनार में पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। पर्यटक मीनार को देखते हुए आपस में चर्चा करते हैं कि यह कुतुब मीनार है या वास्तव में एक वेधशाला।
निष्कर्ष: सच जानने की जरूरत
कुतुब मीनार का इतिहास जितना भव्य है, उतना ही रहस्यमयी भी। यह केवल एक मीनार नहीं है, बल्कि इतिहास और सभ्यता के कई पहलुओं को समेटे हुए है। चाहे यह वेधशाला हो या कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनाई गई मीनार, देश को इसके सही इतिहास को जानने का हक है।