Chapter 1- ठोस अवस्था Long Answers (Chemistry 12th Class UP Board)

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आपका स्वागत है “Chapter 1- ठोस अवस्था (12th Class UP Board), Important long answers questions with answers” नामक मेरे ब्लॉग पोस्ट में। इस पोस्ट में, मैं आपके साथ उत्तर प्रदान करने जा रहा हूँ जो आपकी 12 वीं कक्षा (उत्तर प्रदेश बोर्ड) में ठोस अवस्था चैप्टर से संबंधित महत्वपूर्ण लम्बे उत्तर वाले प्रश्नों के हैं। इस पोस्ट में, मैं इन प्रश्नों के उत्तर देने के साथ-साथ आपको उनके बारे में विस्तार से बताऊंगा ताकि आप इन प्रश्नों का समझने और उत्तर लिखने में सक्षम हो सकें। इस पोस्ट के माध्यम से, आप अपनी ठोस अवस्था के ज्ञान को मजबूत कर सकते हैं और अपनी अध्ययन योग्यता को बढ़ा सकते हैं।

Important Questions For Board Exams

Contents
  1. Question-1 शॉटकी दोष क्या होता है ?
  2. Question-2 किस प्रकार के दोष से क्रिस्टल का घनत्व अपरिवर्तित रहता है ?
  3. Question-3 scc , bcc तथा fcc यूनिट सेल में उपस्थित परमाणुओं संख्या क्या होती है ?
  4. Question-4 X तथा Y परमाणुओं द्वारा निर्मित एक यौगिक घनीय संरचना में क्रिस्टलित होता है | परमाणु X घन के कोनो पर उपस्थित है जबकि परमाणु Y फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित है | यौगिक का सूत्र बताइये |

  5. Question-5 F – केन्द्र क्या होता है ?

  6. Question-6 hcp तथा ccp में समन्वय संख्या कितनी होती है ?

  7. Question-7 सिल्वर fcc जालक में क्रिस्टलित होता है, यदि सेल के किनारे की लम्बाई 4.07×10 सेमी तथा घनत्व 10.5 ग्राम/सेमी हो तो सिल्वर Ag के परमाणु भार की गणना कीजिये

  8. Question-8 चतुष्फलकीय रिक्ति से क्या अभिप्राय है ? रिक्ति की त्रिज्या r तथा घटक कण की त्रिज्या R में क्या सम्बन्ध है ?

Question-1 शॉटकी दोष क्या होता है ?

शॉटकी दोष एक विद्युत इंजीनियरिंग का दोष होता है, जो अक्सर यंत्रों में पाया जाता है। इस दोष का कारण यह होता है कि विद्युत के तीव्र तरंगों या उच्च वोल्टेज के कारण विद्युतीय बचत नहीं होती है और यंत्र या सामान के कुछ हिस्से गर्म हो जाते हैं। जब यंत्र इस तरह से गर्म होता है, तो यह संभव है कि यंत्र का चालक प्रणाली खराब हो जाए या यंत्र का संपूर्ण बन्द हो जाए।

शॉटकी दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे कि गलत संरचना, अनुपयुक्त बंदों या स्विचों का उपयोग, अनुपयुक्त इंसुलेशन या विद्युत के तरल विराम के कारण। इसलिए, एक अनुभवी विद्युत इंजीनियर को अपने यंत्रों की संरचना को समझना और यंत्रों में शॉटकी दोष को दूर करने के लिए उपयुक्त उपायों का उपयोग करना चाहिए।

शॉटकी दोष की परिभाषा

शॉटकी दोष एक ऐसी स्थिति होती है जब विद्युत की एक शॉटकी या छोटी सी संकेत बल्ब के बीच तार में लग जाती है। इसके कारण तार में बिजली का अधिक मात्रा में व्यवहार होता है जो उन यंत्रों को खराब कर सकता हैं जो उसी तार से जुड़े होते हैं।

शॉटकी दोष के कारण

शॉटकी दोष के कुछ मुख्य कारण हैं:

गलत संरचना: यदि एक यंत्र के विभिन्न भागों के बीच संरचना सही न हो तो शॉटकी दोष हो सकता है।

अनुपयुक्त बंदों या स्विचों का उपयोग: यदि यंत्रों में अनुपयुक्त बंद या स्विच का उपयोग किया जाता है, तो इससे शॉटकी दोष हो सकता है।

अनुपयुक्त इंसुलेशन: अनुपयुक्त इंसुलेशन से भी शॉटकी दोष हो सकता है।

विद्युत के तरल विराम: विद्युत के तरल विराम यानी स्कैटरिंग और रिफ्लेक्शन के कारण भी शॉटकी दोष हो सकता है।

तार के दोनों धातुओं के संपर्क: यदि तार के दोनों धातुओं का संपर्क हो जाता है, तो शॉटकी दोष हो सकता है।

भौतिक टकराव: यदि किसी यंत्र को अधिक टकराव मिलता है, तो शॉटकी दोष हो सकता है।

फिर से आरंभ करने पर संचालित यंत्र: कभी-कभी यंत्रों को फिर से आरंभ करने पर शॉटकी दोष हो सकता है।

अनुपयुक्त तरल धारा: अनुपयुक्त तरल धारा के कारण भी शॉटकी दोष हो सकता है।

ये थे कुछ मुख्य कारण जो शॉटकी दोष को होने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

शॉटकी दोष के प्रभाव

शॉटकी दोष के प्रभाव कई होते हैं और इनका संभवतः नुकसानदायक होना संभव होता है। यह नुकसान निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. यंत्र के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंच सकता है जो शॉटकी दोष के कारण तबाह हो जाते हैं।
  2. शॉटकी दोष से यंत्र का निर्माण होने वाले उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
  3. यंत्र के कामकाज में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है, जो उसके कार्यक्रम को विफल बना सकती है।
  4. शॉटकी दोष से यंत्र की उम्र कम हो सकती है, क्योंकि इससे उसकी उपयोगिता घट सकती है।
  5. शॉटकी दोष का सीधा प्रभाव यंत्र के संरचना पर हो सकता है, जो यंत्र को खतरे में डाल सकता है।
  6. शॉटकी दोष से यंत्र के संचालन के समय उच्च शोर या वायु उत्पन्न हो सकता है, जो उपयोगकर्ताओं के लिए असुविधाजनक हो सकता है।
  7. यंत्र की बढ़ती उम्र से शॉटकी दोष की संभावना भी बढ़ जाती है, जो उसकी उपयोगिता को कम कर सकता है।

शॉटकी दोष से बचने के उपाय

शॉटकी दोष से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  1. उत्पादन की दृष्टि से, शॉटकी दोष के उत्पन्न होने की संभावना को कम करने के लिए, उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए शुद्ध उपकरण और केमिकल का उपयोग किया जाना चाहिए।
  2. शॉटकी दोष से बचने के लिए, उत्पादों की अच्छी तरह से निगरानी की जानी चाहिए जिसमें सुरक्षा के सम्बन्ध में विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।
  3. यंत्रों की देखभाल के लिए नियमित रूप से मॉनिटरिंग की जानी चाहिए, ताकि शॉटकी दोष का जल्द से जल्द पता चल सके।
  4. शॉटकी दोष से बचने के लिए यंत्रों को साफ-सफाई रखा जाना चाहिए, जिससे यंत्र की उम्र बढ़ सकती है और उसकी उपयोगिता बढ़ सकती है।
  5. यंत्रों को नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए, ताकि उनमें किसी भी तरह की कमी को तुरंत पता चल सके और समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो सके।

Question-2 किस प्रकार के दोष से क्रिस्टल का घनत्व अपरिवर्तित रहता है ?

क्रिस्टलों के घनत्व का मापन क्रिस्टल इंजीनियरिंग में बहुत महत्वपूर्ण होता है। अधिकतर अवसंरचनाओं में दोषों के प्रवेश के कारण क्रिस्टल के घनत्व में परिवर्तन होता है। यह दोष क्रिस्टल के समान विभाजन और समान समतल विभाजन को प्रभावित करते हैं जिससे क्रिस्टल का घनत्व अपरिवर्तित रहता है। इस लेख में, हम इस समस्या के पीछे के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जिससे कि आप इस विषय को और भी गहराई से समझ सकें।

इंटरस्टिशियल दोष की परिभाषा

इंटरस्टिशियल दोष वे दोष होते हैं जो क्रिस्टल की अंतरिक्ष सम्पर्क स्थानों (interstices) में होते हैं। ये खाली स्थान होते हैं जो क्रिस्टल संरचना की खाली जगहों को भरने के लिए उपलब्ध होते हैं। इंटरस्टिशियल दोष अन्य दोषों के तुलना में अतिरिक्त विकृतियों को कम होने देते हैं और इस प्रकार के दोष क्रिस्टल की मजबूती को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, कच्चे लोहे में कार्बन के इंटरस्टिशियल दोष क्रिस्टल की मजबूती को बढ़ाते हैं।

इंटरस्टिशियल दोष के प्रकार

इंटरस्टिशियल दोष दो प्रकार के होते हैं:

  1. आवृत्ति दोष: इसमें एक विदेशी अणु वाले दोष को क्रिस्टल खाली स्थानों में स्थापित किया जाता है। इसमें दोष के अणु क्रिस्टल संरचना के अणु से अधिक आवृत्ति वाले होते हैं। इसलिए, इसे आवृत्ति दोष कहा जाता है।
  2. अवशेष दोष: इसमें क्रिस्टल के अणु या जोड़ के अंतरिक्ष सम्पर्क स्थानों में विदेशी अणु को स्थापित किया जाता है। इसमें दोष के अणु क्रिस्टल संरचना के अणु से कम आवृत्ति वाले होते हैं। इसलिए, इसे अवशेष दोष कहा जाता है।

दोनों प्रकार के इंटरस्टिशियल दोष क्रिस्टल में अतिरिक्त विकृतियों को कम करते हैं और क्रिस्टल की मजबूती को बढ़ाते हैं।

इंटरस्टिशियल दोष के कारण

इंटरस्टिशियल दोष के कई कारण हो सकते हैं। इसमें शामिल हो सकते हैं:

  1. विद्युत आवेश: जब आप कोई विद्युत चालित यंत्र या मशीन चलाते हैं, तो वह ताप उत्पन्न करता है जो उसके आसपास के वातावरण में इंटरस्टिशियल दोष का कारण बनता है।
  2. अतिरिक्त तापमान: उच्च तापमान पर धातुओं के अणुओं के बीच अधिक स्थान उपलब्ध होता है, जो इंटरस्टिशियल दोष का कारण बनता है।
  3. अन्य धातुओं के सम्मिश्रण: धातुओं के सम्मिश्रण में अलग-अलग धातुओं के अणु आसानी से आपस में बदल सकते हैं, जो इंटरस्टिशियल दोष का कारण बनते हैं।
  4. अधिक तापमान पर धातुओं की उद्घटन: कुछ धातुओं पर अधिक तापमान पर उनके अणु उद्घटित हो सकते हैं, जो इंटरस्टिशियल दोष का कारण बनता है।
  5. अन्य धातुओं के सम्मिश्रण से उत्पन्न होने वाले खनिजों: कुछ धातुओं के सम्मिश्रण से उत्पन्न होने वाले खनिजों में इंटरस्टिशियल दोष का कारण बनता है

इस प्रकार, हमने जाना कि इंटरस्टिशियल दोष क्या होते हैं, इनके प्रकार क्या होते हैं और इनके कारण क्या होते हैं। हमने इस लेख में इन दोषों के विस्तृत विवरण प्रदान किए हैं। यदि आपके मन में इस संबंध में कोई सवाल या सुझाव हैं, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमसे संपर्क करें।

Question-3 scc , bcc तथा fcc यूनिट सेल में उपस्थित परमाणुओं संख्या क्या होती है ?

यूनिट सेल क्या है?

यूनिट सेल एक ऐसा आकार होता है जो सभी अणुओं को समान आकार वाले तथा एक ही आकार के आणविक संरचनात्मक आकार में व्यवस्थित करता है। यह एक न्यूनतम आणविक संरचनात्मक आकार होता है, जो सभी घटकों की स्थानीय संरचनाओं को निर्धारित करता है। यूनिट सेल के द्वारा हम समझते हैं कि एक द्रव्य के आणविक संरचन का वर्णन किस आकार में हो सकता है।

SCC, BCC और FCC की परिभाषा

SCC: एससीसी (SCC) एक यूनिट सेल होती है, जिसमें एक ही परमाणु आणविक गतिविधि करती है। इस यूनिट सेल में, परमाणु को आकार के लिए एक घनत्व दिया जाता है। एक सामान्य घनत्व वाले सोने का एससीसी यूनिट सेल सबसे साधारण उदाहरण होता है।

BCC: बीसीसी (BCC) यूनिट सेल में, एक अंतर्भाग में आठ परमाणु आणविक गतिविधि करती हैं, जबकि दूसरे अंतर्भाग में सिर्फ आठवें परमाणु की आणविक गतिविधि होती है। बीसीसी यूनिट सेल का सबसे साधारण उदाहरण लोहे का होता है।

FCC: एफसीसी (FCC) यूनिट सेल में, एक अंतर्भाग में आठ परमाणु आणविक गतिविधि करती हैं जबकि दूसरे दो अंतर्भागों में छः परमाणु आणविक गतिविधि करती हैं। एफसीसी यूनिट सेल का सबसे सामान्य उदाहरण सोने का होता है।

SCC, BCC और FCC यूनिट सेल में परमाणु संख्या

एससीसी (SCC) यूनिट सेल

  • एससीसी यूनिट सेल का सबसे साधारण उदाहरण सामान्य घनत्व वाले सोने का होता है।
  • इसमें एक ही परमाणु आणविक गतिविधि करती है।
  • इसकी यूनिट सेल में परमाणु संख्या 1 होती है।

बीसीसी (BCC) यूनिट सेल

  • बीसीसी यूनिट सेल का सबसे साधारण उदाहरण लोहे का होता है।
  • इसमें एक अंतर्भाग में आठ परमाणु आणविक गतिविधि करती हैं, जबकि दूसरे अंतर्भाग में सिर्फ आठवें परमाणु की आणविक गतिविधि होती है।
  • इसकी यूनिट सेल में परमाणु संख्या 2 होती है।

एफसीसी (FCC) यूनिट सेल

  • एफसीसी यूनिट सेल का सबसे साधारण उदाहरण कच्चे चांदी का होता है।
  • इसमें तीनों अक्षों पर से आठ अंतर्भागों में परमाणु आणविक गतिविधि करती हैं।
  • इसकी यूनिट सेल में परमाणु संख्या 4 होती है।

Question-4 X तथा Y परमाणुओं द्वारा निर्मित एक यौगिक घनीय संरचना में क्रिस्टलित होता है | परमाणु X घन के कोनो पर उपस्थित है जबकि परमाणु Y फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित है | यौगिक का सूत्र बताइये |

यौगिक का वर्णन:

यह एक घनीय संरचना है जो X तथा Y परमाणुओं द्वारा निर्मित होती है। यहाँ, X परमाणु घन के कोनों पर उपस्थित होते हैं जबकि Y परमाणु फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित होते हैं।

यौगिक का सूत्र:

इस यौगिक का सूत्र “AB” होगा, जहाँ A घन परमाणु होगा और B फलक परमाणु होगा। इसलिए, यह यौगिक “AXBY” के रूप में लिखा जा सकता है।

संरचना का विश्लेषण:

यह घनीय संरचना एक क्रिस्टल के रूप में पायी जाती है जिसमें X तथा Y परमाणुओं की स्थिति स्थापित होती है। X परमाणु घन के कोनों पर उपस्थित होते हैं जबकि Y परमाणु फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित होते हैं। इस तरह, X तथा Y परमाणुओं के बीच दूरी एक निश्चित संबंध से निर्धारित होती है जो संरचना को स्थापित करती है।

अन्य मामलों में भी, घनीय संरचनाएं अलग-अलग परमाणुओं के बीच निश्चित संबंधों से निर्मित होती हैं जो उन्हें स्थापित करते हैं। इसलिए, घनीय संरचनाएं अपने सूत्र तथा संरचना के आधार पर परमाणुओं की संख्या का भी निर्धारण किया जा सकता है।

सारांश:

इसलिए, यह घनीय संरचना एक “AXBY” यौगिक है जिसमें X परमाणु घन के कोनों पर उपस्थित होते हैं जबकि Y परमाणु फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित होते हैं। यह संरचना दूरी के निश्चित संबंधों से निर्मित होती है जो संरचना को स्थापित करते हैं। इस तरह, परमाणुओं की संख्या का निर्धारण किया जा सकता है और घनीय संरचनाएं अलग-अलग परमाणुओं के बीच निश्चित संबंधों से निर्मित होती हैं।


Question-5 F – केन्द्र क्या होता है ?

केन्द्र क्या होता है?

केंद्र शब्द रसायन विज्ञान में एक महत्वपूर्ण शब्द है जो विभिन्न पदार्थों की संरचना और गुणों के अध्ययन में उपयोग किया जाता है। इसे विभिन्न पदार्थों की संरचना के अध्ययन में समझाने के लिए उपयोग किया जाता है।

केंद्र का अर्थ यह है कि यह दो बिंदुओं के बीच की दूरी है जो दो पदार्थों के बीच होती है। दो पदार्थों के बीच की दूरी को बताने के लिए जिस बिंदु पर यह दूरी सबसे कम होती है, उसे उन दो पदार्थों के बीच का केंद्र माना जाता है।

केंद्र और अणु की संबंधितता:

केंद्र और अणु के बीच संबंध बहुत गहरा होता है। एक अणु में केंद्र की मात्रा के साथ साथ घनत्व भी होता है। अणु की संरचना का अध्ययन करने के लिए, एक संरचना के केंद्रों के बीच की दूरी की मात्रा को जानना आवश्यक होता है। अधिकतम केंद्र जोड़ अधिक घन पदार्थ की घनत्व के साथ संबंधित होता है। इसलिए, केंद्र और घनत्व दोनों का अध्ययन अणु की संरचना को समझने में मदद करते हैं।

X तथा Y परमाणु वाले यौगिक में केंद्र का स्थान:

X तथा Y परमाणु वाले यौगिक में, जब यह यौगिक क्रिस्टल रूप में जमा होता है, तो X परमाणु घन के कोनों पर उपस्थित होते हैं। यह अर्थ है कि X परमाणु का केंद्र घन के कोनों पर स्थित होता है। दूसरी ओर, Y परमाणु फलक के सभी केंद्रों पर उपस्थित होते हैं, इसका अर्थ है कि Y परमाणु का केंद्र फलक के केंद्र में स्थित होता है।

इस यौगिक का सूत्र:

इस यौगिक का सूत्र निम्नलिखित होगा:

XY

जहाँ, X परमाणु का केंद्र घन के कोनों पर स्थित होता है और Y परमाणु का केंद्र फलक के केंद्र में स्थित होता है। यह सूत्र इस यौगिक की संरचना को दर्शाता है।

इस प्रकार, रसायन विज्ञान में केंद्र का अध्ययन पदार्थों की संरचना और गुणों को समझने में मदद करता है। X तथा Y परमाणु वाले यौगिक में, X परमाणु का केंद्र घन के कोनों पर स्थित होता है और Y परमाणु का केंद्र फलक के केंद्र में स्थित होता है।

इसलिए, यह अध्ययन रसायन विज्ञान में महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें विभिन्न पदार्थों की संरचना और गुणों की समझ मिलती है। केन्द्र की स्थिति विभिन्न पदार्थों में अलग-अलग होती है, जो उनकी अद्वितीयता को दर्शाती है।

इसलिए, यदि हम पदार्थों की संरचना और उनके गुणों को समझना चाहते हैं, तो हमें उनके केंद्रों को भी समझना होगा। इसलिए, रसायन विज्ञान में केन्द्र का अध्ययन महत्वपूर्ण होता है।


Question-6 hcp तथा ccp में समन्वय संख्या कितनी होती है ?

एचसीपी और सीसीपी गतिशील क्रिस्टल क्षेत्रों के अध्ययन में उपयोगी होती हैं। इनमें समन्वय संख्या एक महत्वपूर्ण पैरामीटर होती है। समन्वय संख्या क्या होती है, इसे समझने के लिए पहले हम क्रिस्टल क्षेत्रों को समझें।

क्रिस्टल क्षेत्र

क्रिस्टल क्षेत्र तीन आयामों में फैले एक समन्वित गतिशील संरचना होती है। यह आयाम समान और अनुपातिक होते हैं। ये अनुपात समन्वित संरचना को स्थायी बनाते हैं।

हेक्सेगोनल क्रिस्टल परिचय

हेक्सेगोनल क्रिस्टल का विशिष्ट विशेषता उसके आयामों के अनुपात में होती है। इसमें दो आयाम समान और तीसरा आयाम उन समान आयामों से अलग होता है। यह क्रिस्टल प्रदर्शित करता है: हेक्सेगोनल त्रिगोनल द्विपाद प्रिज्म। हेक्सेगोनल क्रिस्टल में उदासीन जगह केंद्र कहलाती है जो तीन समान आयामों के बीच का केंद्र होता है।

सीसीपी क्रिस्टल परिचय

सीसीपी क्रिस्टल एक अन्य प्रकार का समन्वित संरचना होता है। इसमें आयाम समान और समानांइति होते हुए इसका नाम समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म होता है। इसका उदासीन जगह केंद्र तीन समानांतर स्थानों के मध्य बनता है।

समन्वय संख्या

समन्वय संख्या या बिंदु समन्वय संख्या एक ऐसी संख्या होती है जो क्रिस्टल गतिशीलता के पैरामीटर को बताती है। इसका मान उन बिंदुओं की संख्या होती है जो क्रिस्टल गतिशीलता के साथ संबंधित होते हैं।

हेक्सेगोनल क्रिस्टल की समन्वय संख्या

हेक्सेगोनल क्रिस्टल की समन्वय संख्या 12 होती है। इसमें तीन समान आयामों के बीच उदासीन जगह केंद्र होता है जो तीन बिंदुओं के समानांतर गुणवत्ता में स्थित होते हैं। तीन अन्य आयाम उस वर्ग के दो स्थानों पर स्थित होते हैं जो समानांतर गुणवत्ता में होते हैं। इसलिए, हेक्सेगोनल क्रिस्टल की समन्वय संख्या 12 होती है।

सीसीपी क्रिस्टल की समन्वय संख्या

सीसीपी क्रिस्टल की समन्वय संख्या 12 होती है। इसका उदासीन जगह केंद्र तीन समानांतर स्थानों के मध्य बनता हैं।

जो समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म के बीच में स्थित होते हैं। इसके अलावा, इसमें दो समान पृष्ठों के बीच एक और उदासीन जगह केंद्र मौजूद होता है जो उन दो पृष्ठों के समानांतर गुणवत्ता में होता है। इसलिए, सीसीपी क्रिस्टल की समन्वय संख्या भी 12 होती है।

समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म के उदासीन जगह केंद्र का महत्व

समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म के उदासीन जगह केंद्र का महत्व उसके गुणवत्ता एवं उसकी समानता में होता है। क्रिस्टल गतिशीलता की विशेषता है कि यह उसकी उत्पत्ति और संरक्षण के दौरान उसमें शामिल अणुओं या आयामों की स्थिति का अहम रोल निभाते हैं। इसलिए, समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म के उदासीन जगह केंद्र का महत्व उसकी गुणवत्ता एवं उसकी समानता के संबंध में होता है।

इस तरह, हमने जाना कि हेक्सेगोनल एवं सीसीपी क्रिस्टल में समन्वय संख्या 12 होती है और समानांतर त्रिकोणीय प्रिज्म के उदासीन जगह केंद्र का महत्व उसकी गुणवत्ता एवं समानता में होता है। ये संख्याएं उनकी संरचना की विशेषताओं को दर्शाती हैं और उनकी विभिन्न गुणों को समझने में मदद करती हैं।

इसके अलावा, केन्द्र एक बहुत महत्वपूर्ण एवं रोचक विषय है जो कि विभिन्न विज्ञानों में अपने अलग-अलग अर्थों में प्रयोग में लिया जाता है। यह एक बिंदु होता है जो एक आकृति या आयाम के साथ अनुपातित होता है। उदाहरण के लिए, आकार या दिशा को मापने के लिए आमतौर पर एक आयाम को मापने के लिए केंद्र का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, इसका उपयोग ज्यामिति, भौतिक रसायन, गणित एवं अन्य विज्ञानों में भी किया जाता है।

इस तरह, हमने जाना कि केन्द्र एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है जो कि विभिन्न विज्ञानों में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, हमने देखा कि यह समन्वय संख्या के साथ क्रिस्टल की संरचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


Question-7 सिल्वर fcc जालक में क्रिस्टलित होता है, यदि सेल के किनारे की लम्बाई 4.07×10 सेमी तथा घनत्व 10.5 ग्राम/सेमी हो तो सिल्वर Ag के परमाणु भार की गणना कीजिये

शीर्षक: सिल्वर के फेस सेंटर क्यूबिक (FCC) क्रिस्टल की पैरामाणु भार की गणना

परिचय:
एफसीसी (FCC) एक अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिस्टल संरचना है जो अनेक धातुओं में पाया जाता है। सिल्वर भी इसी क्रिस्टल संरचना में फैसलता है। इसलिए, इस लेख में हम सिल्वर के FCC क्रिस्टल की पैरामाणु भार की गणना करेंगे।

मूल्यों की दी गई जानकारी:
सिल्वर के सेल के किनारे की लम्बाई = 4.07 × 10 सेमी
सिल्वर के सेल के किनारे की घनत्व = 10.5 ग्राम/सेमी³

पैरामाणु भार की परिभाषा:
पैरामाणु भार एक धातु के एक पैरामाणु के वजन को कहते हैं। यह सामान्य रूप से एमयू (Atomic Mass Unit) में मापा जाता है।

पैरामाणु भार की गणना:
एफसीसी क्रिस्टल में एक सेल में धातु के पैरामाणु की संख्या निम्नलिखित सूत्र से निकाली जा सकती है:

निकास सूत्र: N = 4n³
यहां, N = पैरामाणु की संख्या और n = सेल के किनारों की संख्या है।

इसलिए, सिल्वर के एफसीसी क्रिस्टल में, न = 4 (क्योंकि FCC क्रिस्टल में हर किनार पर 4 पैरामाणु होते हैं) इसलिए, N = 4 × 4³ = 64

अब, पैरामाणु भार की गणना के लिए, हम धातु के पैरामाणु की संख्या को उसके अणु के पैरामाणु भार से गुणा करेंगे।

इसलिए, सिल्वर के अणु के पैरामाणु भार को 107.8682 एमयू माना जाता है।

अब, सिल्वर के FCC क्रिस्टल में पैरामाणु भार की गणना करते हुए:

पैरामाणु भार = N × अणु का पैरामाणु भार = 64 × 107.8682 एमयू = 6903.5518 एमयू

उत्तर: सिल्वर के FCC क्रिस्टल में पैरामाणु भार 6903.5518 एमयू है।


Question-8 चतुष्फलकीय रिक्ति से क्या अभिप्राय है ? रिक्ति की त्रिज्या r तथा घटक कण की त्रिज्या R में क्या सम्बन्ध है ?

चतुष्फलकीय रिक्ति का अर्थ

चतुष्फलकीय रिक्ति एक वर्गाकार घन में चारों कोनों के बीच मौजूद रिक्त स्थान होता है। यह रिक्त स्थान घन के चारों कोनों की त्रिज्याओं के बीच जोड़े गए समझे जाते हैं।

चतुष्फलकीय रिक्ति के लिए स्थान और आयतन की गणना

चतुष्फलकीय रिक्ति के स्थान की गणना के लिए घन की त्रिज्या (a) का आधा लेकर इसे क्षैतिज भाग में विभाजित करें। इसके बाद इसे घन की त्रिज्या से घटाएं। इस प्रक्रिया को निम्नलिखित सूत्र से दर्शाया जाता है।

स्थान = (a/2) – R

चतुष्फलकीय रिक्ति के आयतन की गणना के लिए, चतुष्फलकीय रिक्ति के स्थान का वर्ग घन की आयतन से गुणा करें।

आयतन = 4/3πR³

चतुष्फलकीय रिक्ति और घटक कण की त्रिज्या के बीच सम्बन्ध

चतुष्फलकीय रिक्ति के बीच घटक कणों की त्रिज्या संबंध निर्धारित करने के लिए, यह मापने के लिए आवश्यक है कि घटक कणों की त्रिज्या और चतुष्फलकीय रिक्ति के स्थान एक दूसरे के साथ संयोजित हों। चतुष्फलकीय रिक्ति के बीच घटक कणों की त्रिज्या का संबंध निम्नलिखित सूत्र से निर्धारित किया जा सकता है।

R = (3/4π) * (V/n)^(1/3)

यहां, V/n घटक कण की आयतन को निर्दिष्ट करता है। इसके अलावा, चतुष्फलकीय रिक्ति के स्थान के संबंध में भी निम्नलिखित सूत्र होता है।

(a/2) = R * √2

यहां, a घन की त्रिज्या होती है।

संधारणीय बिंदु

चतुष्फलकीय रिक्ति एक महत्वपूर्ण संधारणीय बिंदु होता है जो घटक कणों की त्रिज्याओं को निर्दिष्ट करता है। यह रिक्त स्थान विभिन्न रसायन विज्ञान और भौतिकी के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होता है।

संक्षेप में

चतुष्फलकीय रिक्ति एक वर्गाकार घन में चारों कोनों के बीच मौजूद रिक्त स्थान होता है। इसका स्थान घन की त्रिज्या और घटक कण की त्रिज्या के बीच संबंध रखता है। यह संधारणीय बिंदु है जो रसायन विज्ञान और भौतिकी में महत्वपूर्ण होता है।

Last updated: अक्टूबर 13, 2023