क्या मौर्या शूद्र है?

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क्या मौर्या शूद्र है? यह एक प्रश्न है जो अक्सर उठता है, जब हम भारतीय इतिहास के महानायक चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में बात करते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने अपने क्षत्रिय मूल के बावजूद भारतीय इतिहास की रचना की और एक शक्तिशाली साम्राज्य निर्माण किया।

जब हम भारतीय इतिहास की जानकारी खोजते हैं, तो वर्णव्यवस्था और सामाजिक विभाजन के बारे में सुनिश्चित रूप से ज्ञान होना चाहिए। मौर्य साम्राज्य का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है, और इसका अध्ययन हमें अपने देश की संस्कृति और समाज के निर्माण में मदद कर सकता है।

इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस प्रश्न पर चर्चा करेंगे कि क्या चंद्रगुप्त मौर्य शूद्र वर्ण में थे या नहीं। हम इसके पीछे की सच्चाई को खोजेंगे और इसके लिए ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों का उपयोग करेंगे। चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में इस तरह की चर्चा आपको उनके व्यक्तित्व, उपलब्धियां, और समाज के प्रभाव के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करेगी।

इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से, हम यह साबित करेंगे कि वर्णव्यवस्था के प्रतीक चंद्रगुप्त मौर्य वास्तव में शूद्र वर्ण में थे या नहीं। आप इस पोस्ट से अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं, और इस रोचक विषय पर अधिक समझ व प्रकाश डाल सकते हैं।

क्या मौर्य शूद्र है?

मौर्य वंश के बारे में विवाद है कि वे क्षत्रिय थे या शूद्र। बौद्ध साहित्य में मौर्य को क्षत्रिय कहा गया है, और हिन्दू धर्मग्रंथ विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण और अन्य हिन्दू ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त के पूर्वज शाक्य कुल से निकले सूर्यवंशी क्षत्रिय थे । इसके विपरीत, कुछ इतिहासकारों का मत है कि मौर्य शूद्र थे ।मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक में चंद्रगुप्त को “वृषल” और “कुलहीन” कहा गया है। ‘वृषल’ के दो अर्थ होते हैं- पहला, ‘शूद्र का पुत्र’ तथा दूसरा, “सर्वश्रेष्ठ राजा”।

बाद के इतिहासकारों ने इसके पहले अर्थ को लेकर चंद्रगुप्त को ‘शूद्र’ कह दिया, लेकिन इतिहासकार राधा कुमुद मुखर्जी का विचार है कि इसमें दूसरा अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) ही उपयुक्त है 

इस प्रकार, विवाद के बीच में, सबूत और तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि मौर्य वंश के लोग सूर्यवंशी क्षत्रिय थे, लेकिन कुछ इतिहासकारों ने उन्हें शूद्र भी कहा है

शाक्य कुल

शाक्य कुल एक प्राचीन हिमालय की तराई क्षेत्र में स्थित राज्य था, जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी, जो अब नेपाल में है । शाक्यवंशी लोगों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति शाक्यमुनि बुद्ध, यानी गौतम बुद्ध था । शाक्य वंश एक प्राचीन हिंदू सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश है, जिसका गोत्र गौतम है, जो एक ब्राह्मण गोत्र है । शाक्य वंश के लोग भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान), नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, और म्यांमार (बर्मा) में रहते हैं 

शाक्य वंश इक्ष्वाकु कुल से भी है, रघु कुल से भी है तथा कुश कुल से भी । विरुधक द्वारा कपिलवस्तु में शाक्यों के नरसंहार करने के बाद, जो शाक्य लोग बच गए, वह कपिलवस्तु के उत्तर में अवस्थित पहाड़ियों में छुप कर रहने लगे । पहाड़ियों में ही शाक्यों को काठमांडू के सांखु (शंखपुर) में किरात नरेश जितेदास्ती के समय में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनाया हुआ वर्खाबास बिहार के बारे में पता चला । इस के बाद शाक्य वंश के लोग उस बिहार में शरणागत हो गए। वहां से शाक्यों ने संघ का फिर से निर्माण किया और विभिन्न बिहारों का निर्माण किया । कालान्तर में नेपाल में ५०० से ज्यादा बौद्ध बिहार और अध्ययन केन्द्रों का निर्माण हुआ

विष्णु-पुराण

ततश्र नव चैतान्नन्दान कौटिल्यो ब्राह्मणस्समुद्धरिस्यति ॥२६॥

तेषामभावे मौर्याः पृथ्वीं भोक्ष्यन्ति ॥२७॥

कौटिल्य एवं चन्द्रगुप्तमुत्पन्नं राज्येऽभिक्ष्यति ॥२८॥ (विष्णु-पुराण)

यह उद्धरण संस्कृत श्लोक है और विष्णु पुराण के एक अध्याय से लिया गया है। इस श्लोक में कहा जा रहा है कि नवनंद को कौटिल्य नामक एक ब्राह्मण मरवा देगा। उसके बाद मौर्य नृप राज्य का आनंद उठाएंगे। कौटिल्य ही मुरा से उत्पन्न चन्द्रगुप्त को राज्याभिषेक करेंगे।

यह उद्धरण भारतीय इतिहास में संबंधित हो सकता है, जो मौर्य साम्राज्य के समय को संकेत करता है। चाणक्य (कौटिल्य) मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री थे और उन्होंने उनकी सामरिक और राजनीतिक रणनीतियों का विकास किया। चंद्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा किया गया था।

वायु पुराण

वायु पुराण में कहा गया है कि उन्नीसवें युग में मोर्य वंश भारत में सूर्यवंश को पुनर्स्थापित करेगा और आगे बढ़ेगा।

भविष्य पुराण

भविष्य पुराण में लिखा है कि मौर्यो ने विष्णुगुप्त ब्राह्मण की मदद से नन्दवंश का शासन समाप्त कर पुन क्षत्रियो की प्रतिष्ठा स्थापित की।

विष्णु पुराण

मरू नामक एक राजा सूर्यवंशी था जो अपनी योग साधना की शक्ति से हिमालय के एक गाँव में निवास करता रहा। भविष्य में उसी सूर्यवंश में चंद्रगुप्त ने क्षत्रिय जाति का पुनर्स्थापना किया। यह ज्ञान विष्णु पुराण की पुस्तक चार, अध्याय 4 में उपलब्ध है।

मत्स्य पुराण

मत्स्य पुराण के अध्याय 272 में यह उल्लेखित है कि दस मौर्य राजवंश भारत पर शासन करेगा और उनकी सत्ता को शुंग राजवंश छीन लेगा, जबकि इन दस मौर्यों में शतधन्व राजा होगा।

शतधन्व, जिसे शतधनान भी कहा जाता है, मौर्य राजवंश का एक राजा था। उन्होंने 195-187 ईसा पूर्व के बीच शासन किया। पुराणों के अनुसार, वे देववर्मन मौर्य के उत्तराधिकारी थे और उन्होंने आठ वर्षों तक राज्य किया। बाद में उन्हें बृहद्रथ मौर्य ने उत्तराधिकारी बनाया।

बौद्ध धर्मग्रंथ

मोरियान खत्तियान वसजात सिरीधर।

चन्दगुत्तो ति पञ्ञात चणक्को ब्रह्मणा ततो ॥१६॥

नवामं घनान्दं तं घातेत्वा चणडकोधसा।

सकल जम्बुद्वीपस्मि रज्जे समिभिसिच्ञ सो १७॥ (महावंश)

मौर्यवंश नामक क्षत्रियों में जन्मे श्री चंद्रगुप्त को चाणक्य नामक ब्राह्मण ने नवां घनानंद को मारकर चंद्रगुप्त के हाथों में सम्पूर्ण जम्बुद्वीप (जम्मूदीप) का राजा बनाया।

  1. बौद्ध साहित्य में मौर्य क्षत्रियों को मौरियवंश के बताया जाता है।
  2. दिव्यावदान में बिन्दुसार को “मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय” कहा गया है।
  3. शाक्य वंश का शाक्य क्षत्रियों पर हमला हुआ और उनकी एक शाखा पिप्पलिवन में निवास करने लगी, जिसके कारण उन्हें मोरिय कहा गया।
  4. सम्राट अशोक के शिलालेखों में उन्होंने अपनी जाति को उज्ज्वल किया है, जिसमें बुद्ध भी थे, इसलिए उन्हें क्षत्रिय कहा जाता है।
  5. बौद्ध ग्रंथ महावंश में चंद्रगुप्त को मौरिया नामक क्षत्रिय वंश का सदस्य बताया गया है।
  6. महापरिनिब्बान सूत्र में मोरियां (मौर्य) को पिपिलिवन के क्षत्रिय समुदाय से जोड़ा गया है, जिसे संभावित रूप से कुरुक्षेत्र के बाहरी इलाके में पिपली कहा जाता है।

चन्द्रगुप्त को शूद्र के रूप में एक पुस्तक, “मुद्राराक्षस” में उल्लेख किया गया है, जो गुप्तकाल में विशाखदत्त द्वारा लिखी गई थी। इस पुस्तक में चन्द्रगुप्त को “वृषल” और “कुलहीन” कहा गया है। इसके द्वारा ‘वृषल’ का एक अर्थ “शूद्र का पुत्र” और दूसरा अर्थ “सर्वश्रेष्ठ राजा” है। कुछ इतिहासकारों ने चन्द्रगुप्त को इस पुस्तक के पहले अर्थ के आधार पर “शूद्र” कहा है। हालांकि, कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इसमें दिए गए दूसरे अर्थ (सर्वश्रेष्ठ राजा) को ही उचित मानना चाहिए। इन तथ्यों और उल्लेखों से संकेत मिलता है कि चन्द्रगुप्त के पूर्वज किसी क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।

सम्बंधित प्रश्न और उत्तर

चंद्रगुप्त मौर्य का वर्ण क्षत्रिय था?

हां, चंद्रगुप्त मौर्य का वर्ण क्षत्रिय था। उन्हें क्षत्रिय वर्ण में मान्यता प्राप्त है।

क्या मौर्य वंश के सदस्य शूद्र थे?

मौर्य वंश के सदस्यों के बारे में विवाद है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि वे शूद्र थे, लेकिन यह एक विवादित मुद्दा है और अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक प्रमाण भी मौजूद हैं।

मौर्य शासनकाल में क्षत्रियों का महत्व था?

हां, मौर्य शासनकाल में क्षत्रियों का महत्व था। क्षत्रिय वर्ण की प्रभावशाली साम्राज्य व्यवस्था उनके शासनकाल में स्थापित की गई थी।

क्या मौर्य साम्राज्य में शूद्रों को उचित स्थान मिला?

मौर्य साम्राज्य में शूद्रों का सामाजिक स्थान प्रतिष्ठित नहीं था। वे समाज की निम्नतम वर्ग में थे और सामाजिक अवस्था में कमजोरी का सामना करते थे।

मौर्य वंश के बारे में कौन-कौन से धर्मग्रंथों में लिखा गया है?

मौर्य वंश के बारे में बौद्ध साहित्य में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, हिन्दू धर्मग्रंथों जैसे विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण और अन्य ग्रंथों में भी मौर्य वंश के बारे में लिखा गया है।

मौर्य साम्राज्य में क्षत्रियों की भूमिका क्या थी?

मौर्य साम्राज्य में क्षत्रियों को राजनीतिक और सैन्य विभागों में महत्वपूर्ण भूमिका मिली थी। उन्हें साम्राज्य के प्रशासकीय कार्यों का प्रभार सौंपा जाता था।

निष्कर्ष

इस ब्लॉग पोस्ट में हमने देखा कि मौर्य वंश के बारे में एक विवाद है कि वे क्षत्रिय थे या शूद्र। इस संदर्भ में बौद्ध साहित्य और हिन्दू धर्मग्रंथों में भी अलग-अलग मत प्रकट होते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ इतिहासकारों का मत है कि मौर्य शूद्र थे। हालांकि, हमें ध्यान देना चाहिए कि यह विषय विवादास्पद है और बहुआयामी है।

मेरे प्यारे पाठकों, आपका यह ब्लॉग पोस्ट पढ़ने का समय और ध्यान हमें देने के लिए ह्रदय से धन्यवाद। हमें गर्व है कि हमने आपके मन में इस विषय के बारे में जानकारी और विचारों का विकास किया है। हमें आशा है कि आपने यह जानकारी महत्वपूर्ण और रोचक पायी होगी।

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Last updated: अक्टूबर 13, 2023

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